सरंक्षिका देवदूती


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

मिली पिंटों जब बहुत छोटी थी तभी उनकी माता की मृत्यु हो गई। उनका बचपन बीमारी और उदासी में कटा। एक श्रद्धालु ईसाई परिवार में जन्म होने के कारण उन्हें सरंक्षक देवदूतों और देवदूतियों में दृढ़ विश्वास था। उनको हमेशा अनुभूति होती थी कि एक दिव्य देवदूती उनकी रक्षा कर रही है। उन्हें इस देवदूती का दर्शन भी होता था।

समय बीतता गया। मिली युवती हो गयी। इसी बीच उनके भाई उदार आश्रमवासी हो गए। मिली उनसे मिलने पांडिचेरी आईं। श्रीमाँ के प्रथम दर्शन पर ही मिली पहचान गई कि वे ही उनकी सरंक्षिका देवदूती थी जिन्होने इतने वर्षों तक उनकी रक्षा की।

(यह कथा मुझे सुश्री गौरी पिंटों ने सुनाई थी )

संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला 


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