सभी जगह मनुष्यों और उनका स्वभाव एक ही होता है। लेकिन मैं उनके दोषों और दुर्बलताओं को नहीं देखती, मैं केवल सम्भावनाओं पर ध्यान देती हूं। मैं जानती हूं कि हर एक अज्ञान से भरा है। सचमुच, उन्हें सुधारने और पूर्ण बनाने में समय लगता है। न्याय, सत्य, शान्ति, सामञ्जस्य, व्यवस्था-ये सभी चीजें एक दिन में नहीं आ सकतीं। बहरहाल, हर एक को स्वयं का रूपान्तर करना होगा और यही कारण है कि ये सभी दोष और स्वभाव का मिथ्यात्व बाहर उभर आते और ‘भागवत चेतना’ के सामने प्रकट होते हैं कि वह उन पर क्रिया करे। अगर हर एक पूर्ण होता तो धरती पर मेरे आने का क्या प्रयोजन होता भला?
यहां सब योगी नहीं हैं, फिर भी, सर्वत्र और सबमें ‘भागवत कृपा’ छायी हुई है। यही कारण है कि प्रत्येक यहां बना रह सकता है, अन्यथा कोई भी नहीं टिक पाता। जीवन में तूफान आते हैं, लेकिन वही समय है जब लोगों को शान्त बने रह कर भगवान् की बांहों में सिमट जाना चाहिये जब तक कि तूफान गुजर न जाये।
संदर्भ : माँ तुमने ऐसे कहा था
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…