समग्र योग इसलिए कहा गया है क्योंकि आध्यात्मिक सिद्धि तथा अनुभव की सामंजस्यपूर्ण संपूर्णता प्राप्त करना इसका लक्ष्य है। इसका लक्ष्य है भागवत सत्य का समग्र अनुभव, जिसका वर्णन गीता ‘समग्र माम’ शब्दों में करती है, भागवत सत्ता का ‘मेरा अखंडित’ स्वरूप। इसकी पद्धति है समस्त चेतना, मन, हृदय, जीवन, शरीर का उस सत्य के प्रति, भागवत सत-चित आनंद के प्रति, उसकी सत्ता तथा समस्त प्रकृति के इसके समग्र रूपांतर के प्रति समग्र उदघाटन ।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…