तुम जो कुछ भी करो वह उपयोगी हो उठता है यदि तुम उसमें सत्य चेतना की एक चिंगारी रख दो।
तुम जो कार्य करते हो उसकी अपेक्षा, तुम्हारें अंदर जो चेतना है वह बहुत ज़्यादा महत्वपूर्ण है। और अगर सत्य-चेतना द्वारा की जायें तो सबसे अधिक निरर्थक दिखने वाली क्रियाएँ भी बहुत सार्थक हो उठती है ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
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