सच्चा विश्राम


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

मैं अत्यन्त बुद्धिशाली, श्रेष्ठ कलाकार लोगों से परिचित थी जो, जैसे ही वे “शिथिल होना” आरम्भ करते, एकदम मूढ़ बन जाते! वे अत्यन्त अश्लील कार्य  करते, कुशिक्षित बच्चों की तरह व्यवहार करते-वे अपने को शिथिल करते। प्रत्येक चीज शिथिल होने की इस “आवश्यकता” के कारण से आती है; और अधिकतर लोगों के लिए इसका मतलब क्या होता है? इसका मतलब होता है, सर्वदा, एक निम्न स्तर पर उतर आना। वे यह नहीं जानते कि सच्चे शिथिलीकरण के लिए हमें एक डिग्री ऊपर उठना चाहिये, अपने-आपको अतिक्रान्त करना चाहिये। यदि मनुष्य नीचे जाता है तो इससे उसकी थकावट बढ़ जाती है और जड़ता आती है। इसके अतिरिक्त, जितनी बार मनुष्य नीचे आता है, अवचेतना के बोझ को बढ़ाता है-उस विशाल बोझ को जिसे हमें बार-बार साफ करना चाहिये, साफ करते रहना चाहिये यदि हम ऊपर चढ़ना चाहें, यह चीज हमारे पैरों की बेड़ियों की तरह है।… यह कभी बालकों को नहीं सिखाया जाता, उन्हें संसार की सभी मूर्खताएं करने दिया जाता है और यह बहाना दिया जाता है कि उन्हें शिथिलीकरण की आवश्यकता है। स्वयं अपने से नीचे डूब कर हम थकावट नहीं दूर कर सकते। हमें सीढ़ी के ऊपर चढ़ना होगा और वहां हमें सच्चा विश्राम प्राप्त होगा,  क्योंकि वहां आन्तरिक शान्ति. ज्योति. वैश्व शक्ति विद्यमान हैं। और इस तरह धीरे-धीरे मनुष्य उस सत्य के सम्पर्क में आता है जो उसके जीवन का सच्चा कारण है।

यदि तम उसके साथ निश्चित रूप में सम्पर्क प्राप्त कर लो तो वह सारी थकावट को पूर्ण रूप से दूर कर देता है।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर (१९५०-१९५१)

 


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