हर उपस्थित व्यक्ति के साथ सचेतन संपर्क स्थापित कर लेने के बाद मैं ‘परम प्रभु’ के साथ एक हो जाती हूँ और तब मेरा शरीर केवल एक माध्यम के अतिरिक्त कुछ नहीं रह जाता जिसमें से ‘वे’ सब पर अपना ‘प्रकाश’, ‘चेतना’ और आनंद उंडेलेते हैं, हर एक पर उसकी क्षमता के अनुसार।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…