तुम्हारे अन्दर जो चीज साधारण जीवन से आसक्त है और जो भागवत जीवन के लिए अभीप्सा करती है, उन दोनों के बीच संघर्ष है । यह तुम्हें देखना है कि जो चीज तुम्हारे अन्दर प्रबल हो उसे चुनो और उसके अनुसार कार्य करो ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
सन्यासी होना अनिवार्य नहीं है - यदि कोई ऊपरी चेतना में रहने के बजाय आन्तरिक…
बाहरी रंग-रूप से निर्णय न करो और लोग जो कहते हैं उस पर विश्वास न…
भगवान् तुम्हारी अभीप्सा के अनुसार तुम्हारे साथ हैं । स्वभावत:, इसका यह अर्थ नहीं है…
मां, ग्रहणशीलता किस बात पर निर्भर करती है? इसका पहला आधार है सच्चाई-व्यक्ति सचमुच ग्रहण…
जैन दर्शन का संबंध व्यक्तिगत पूर्णता से है। हमारा प्रयास बिल्कुल भिन्न है। हम एक…