हे तू, एकमात्र परम सद्वस्तु, हमारे प्रकाश के प्रकाश और हमारे जीवन के जीवन, हे परम प्रेम, हे संसार के त्राता, वर दे कि मैं तेरी सतत उपस्थिति की अभिज्ञता के बारे में पूर्णतया अधिकाधिक जाग्रत् हो सकू, वर दे कि मेरे सभी कर्म तेरे विधान का समर्थन करें। कृपा कर कि तेरी इच्छा और मेरी इच्छा के बीच कोई फर्क न रहे। मुझे मेरे मन की भ्रामक चेतना में से निकाल, मन की कपोल कल्पनाओं के जगत् से निकाल; वर दे कि मैं अपनी चेतना को तेरी निरपेक्ष चेतना के साथ तदात्म कर सकूँ क्योंकि
वह तू ही है।
लक्ष्य को पाने के लिए मेरी इच्छा को सातत्य प्रदान कर, मुझे वह दृढ़ता, वह ऊर्जा और वह साहस प्रदान कर जो समस्त जड़ता और शिथिलता से पीछा छुड़ा सके। मुझे पूर्ण निस्स्वार्थता की शान्ति प्रदान कर, ऐसी शान्ति जो तेरी उपस्थिति का अनुभव कराये और तेरे हस्तक्षेप को प्रभावकारी बनाये, ऐसी शान्ति जो सदा समस्त दुर्भावना और प्रत्येक अन्धकार पर विजयी मैं अनुनय करती हूं कि मुझे ऐसा वर दे कि मेरी सत्ता तेरे साथ एकात्म हो जाये। वर दे कि मैं तेरी परम उपलब्धि की ओर पूर्णतः जाग्रत् प्रेम की ज्वाला के सिवा कुछ और न होऊं।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…