यदि व्यक्ति श्रीकृष्ण को पाना चाहता है, तो वह उन्हें पा लेता है किन्तु वे ऐसे देव हैं जो बड़ी परीक्षा लेते हैं और तुरन्त नहीं आते, यद्यपि वे किसी भी समय अचानक प्रकट भी हो सकते हैं। परन्तु सामान्यतः व्यक्ति को उन्हें इतना अत्यधिक और इतना हठपूर्वक चाहना होगा कि इसके लिए कुछ भी मूल्य चुकाने को वह तैयार रहे। व्यक्ति को जानना होगा कि कैसे प्रतीक्षा करनी चाहिये, साथ ही चाहना भी होगा-दीर्घतम अस्वीकृति की ओर ध्यान दिये बिना आग्रह पर आग्रह करते ही रहना होगा। यह चैत्य कर सकता है -परन्तु मन और प्राण को भी ऐसा करना सीखना होगा।
निश्चय ही कृष्ण को काफी मनमौजी होने का, कठिन बरताव करने तथा विनोदशीलता या मजाक (लीला!) के लिए श्रेय दिया जाता है, पर वे लोग, जिनके साथ ये ऐसी लीला करते हैं, हमेशा तुरन्त इन सबका महत्त्व नहीं समझ पाते। परन्तु उनके मनमौजीपन में विवेचना के साथ-साथ एक गुप्त विधि है और जब वे इससे बाहर आते हैं और तुम्हारे प्रति अच्छा बरताव करने की मौज में होते हैं, तब उनमें एक चरम आकर्षण, सम्मोहन, प्रलोभन की पराकाष्ठा होती है और तुमने जितना कष्ट झेला है वह उससे कहीं अधिक क्षतिपूर्ति कर देती है।
शब्द के समुचित अर्थ में गोपियां साधारण स्त्रियां नहीं हैं वे अपने प्रेम, भावप्रवण भक्ति, निःसंकोच आत्मदान की पराकाष्ठा के कारण असाधारण हैं। जिसके पास भी यह सब है, वह, अन्य दृष्टियों से कितनी भी दीन- हीन अवस्था में क्यों न हो-विद्या, बाह्य पवित्रता आदि-आदि, आसानी से कृष्ण का अनुगमन कर सकता और उन्हें प्राप्त कर सकता है। गोपियों के प्रतीक का यही अर्थ मुझे मालूम पड़ता है। निस्सन्देह अन्य अनेक अर्थ हैं-यह केवल उनमें से एक है।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…