श्रीअरविंद मेरे गुरु हैं

आश्रम के एक साधक विश्वजीत ताल्लुकदार को साधु-संतों से मिलने का बहुत शौक था। अतः वे प्रतिवर्ष भारत भ्रमण करके साधु-संतों से भेंट करते थे।

एक बार बंगाल जाने पर उनके एक मित्र ने उन्हें कांधी के १२० वर्ष से भी अधिक आयु के एक महान राजपूत संत पिशाच बाबा के विषय में बताया। मित्र ने कहा कि ये संत १०-१२ भयानक कुत्तों के साथ रहते है और जब कोई उन्हें दर्शन करके समीप आना चाहता वे उसको पत्थर मारते और गालियां देते थे। जनता से पीछे छुड़ाने के लिए बहुत से सिद्ध संत इस प्रकार का व्यवहार करते हैं ।

विश्वजीत का मित्र उनके साथ कांधी आया किन्तु उसमें पिशाच बाबा के सामने जाने की हिम्मत नहीं थी । विश्वजीत अकेले ही बाबा के पास गए। बाबा उनको साष्टांग प्रणाम करके पृथ्वी पर लेट गए तो वे आश्चर्यचकित रह गए। प्रणाम के पश्चात जब बाबा खड़े हुए तब विश्वजीत ने पूछा, “बाबा! आपने मुझे प्रणाम क्यों किया?” बाबा गाली देकर बोलें, “साला! मैंने तुझे प्रणाम नहीं किया, वरन श्रीअरविंद को प्रणाम किया है। वे मेरे गुरु हैं। मुझे अरविंद बाबू के दर्शन कलकत्ते में हुए थे। अव बे एक ऋषि हो गए हैं। ”

विश्वजीत ने पूछा, “बाबा, मैंने तो आपको यह नहीं बताया कि मैं श्रीअरविंद आश्रम से आया हूँ। आपको कैसे ज्ञात हुआ ?”

बाबा ने उत्तर दिया, “क्या मुझे बताने कि कोई आवश्यकता है?”

बाद में बाबा ने श्रीअरविंद के विषय में अनेक बातें बताई। उन्होने कहा, “अभी श्रीअरविंद का युग नहीं आया है । २१ वीं सदी से उनका युग आरंभ होगा। तब सारी दुनिया उनका अनुसरण करेगी। पश्चिमी जगत उनकी ओर अधिक आकर्षित होगा। ”

संदर्भ : श्रीअरविंद और श्रीमाँ की दिव्य लीला 

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