नलिनी कांत गुप्त की नववधू इन्दुलेखा आश्रम आईं।  यह उन दिनों की बात है जब श्रीअरविंद ने एकांतवास आरम्भ नहीं किया था, अतः लोग उनसे भेंट – वार्तालाप कर सकते थे।

एक बार इन्दुलेखा श्रीअरविंद के पास बैठी थीं। उसी समय एक शवयात्रा गली में से गुज़री। लोग ऊँचे स्वर में रो-पिट रहे थे। उनका गगनभेदी, ह्रदयविदारक क्रंदन सुनकर इन्दुलेखा बुरी तरह से डर गयी और उन्होंने श्रीअरविंद को कसकर पकड़ लिया।

श्रीअरविंद ने इन्दुलेखा को आश्वासन देकर कहा, “डरने की कोई बात नहीं। भय मन में होता है। उसे वहाँ से निकाल फेकों।

(यह कथा मुझे स्वर्गीय इन्दुलेखा दीदी के पुत्र श्री सुबीर कांत ने सुनाई थी।)

संदर्भ : श्रीअरविंद और श्रीमाँ की दिव्य लीला 

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