परम श्रद्धा वह है जो सबके अन्दर ईश्वर को देखती है और उस श्रद्धा के नेत्र के लिए अभिव्यक्ति तथा अनभिव्यक्ति एक ही परमेश्वर हैं । पूर्ण मिलन या योगयुक्त भाव वह है जो प्रत्येक क्षण में, प्रत्येक कार्य में तथा सम्पूर्ण प्रकृति के साथ भगवान से मिलता है ।
संदर्भ : गीता प्रबंध
अगर तुम्हारी श्रद्धा दिनादिन दृढ़तर होती जा रही है तो निस्सन्देह तुम अपनी साधना में…
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…