परम श्रद्धा वह है जो सबके अन्दर ईश्वर को देखती है और उस श्रद्धा के नेत्र के लिए अभिव्यक्ति तथा अनभिव्यक्ति एक ही परमेश्वर हैं । पूर्ण मिलन या योगयुक्त भाव वह है जो प्रत्येक क्षण में, प्रत्येक कार्य में तथा सम्पूर्ण प्रकृति के साथ भगवान से मिलता है ।
संदर्भ : गीता प्रबंध
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…