जो श्रद्धा वैश्व भगवान के प्रति जाती है वह लीला की आवश्यकताओं के कारण अपनी क्रियाशक्ति में सीमित रहती है।
इन सीमाओं से पूरी तरह छुटकारा पाने के लिए तुम्हें परात्पर भगवान तक पहुँचना चाहिये।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
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