जो श्रद्धा वैश्व भगवान के प्रति जाती है वह लीला की आवश्यकताओं के कारण अपनी क्रियाशक्ति में सीमित रहती है।
इन सीमाओं से पूरी तरह छुटकारा पाने के लिए तुम्हें परात्पर भगवान तक पहुँचना चाहिये।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…