माताजी, 

मैं आपको स्पष्ट रूप से बता दूँ कि में कब खुश नहीं रहती; जब कोई मुझे खुशी से अपनी सुंदर और सुखद अनुभूतियों के बारे में सुनाता है तो मैं अपने-आपको बहुत तुच्छ अनुभव करती हूँ। मुझे लगता है कि मेरे अंदर वह चीज़ नहीं है जो होनी चाहिये।

और मैं हमेशा आपसे शांति और नीरवता की मांग करती हूँ, (जैसा कि मैंने उस दिन कहा था) क्योंकि मैं जानती हूँ कि अगर हम सदा उस शांति और नीरवता को रख सके तो किसी भी कारण से अपने-आपको तुच्छ अनुभव न करेंगे। 

मैं इतना तुच्छ नहीं होना चाहती, ऐसा अनुभव नहीं करना चाहती।

 

तुम्हें शांति और नीरव आनंद का अनुभव पहले ही हो चुका है; तुम जानती हो कि वह क्या है और वह निश्चित रूप से ज्यादा प्रबल और स्थिर रूप से वापिस आयेगा। विश्वास रखो, अपने-आपको यंत्रणा न दो  – इस तरह तुम उसके आगमन को तेज कर सकती हो।

तुम्हारी माँ की ओर से मधुर प्रेम ।

संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)

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