मैं आपसे फिर से पूछता हूँ माँ, वह कौन-सी चीज़ है जो मेरी सत्ता को विभक्त करती है ?
संघर्ष है उसके बीच जो चेतना के लिए अभीप्सा करता है यानि सत्ता का ‘सात्विक’ भाग और दूसरा है सत्ता का ‘तामसिक’ भाग जो अपने ऊपर निश्चेतना का आक्रमण और शासन होने देता है, एक वह जो ऊपर की ओर धकेलता है और दूसरा वह जो नीचे की ओर खीचता हैं, अतः वह सब प्रकार के बाहरी प्रभावों के आधीन है ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…