आश्रम में जब कपड़े धोने की व्यवस्था शुरू हुई कुछ धुले हुए कपड़े माताजी के देखने के लिए उनके पास लाये जाते थे । एक दिन धुले कपड़ों की बड़ी -सी गठरी उनके सामने लाकर रखी गयी । माताजी ने यूं ही गठरी के बीच से एक कपड़ा निकाला और उसपर एक भद्दा सा दाग लगा था । जो कपड़े दिखा रहा था वह काफी घबरा गया, परंतु यह बात थी बड़ी शिक्षाप्रद कि माताजी का हाथ सीधा उसी कपड़े पर गया जिसमें दाग था ।
संदर्भ : माताजी की झाँकियाँ
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…