औषधि उतना रोगमुक्त नहीं करती जितना कि चिकित्सक और औषधि में रोगी की श्रद्धा करती है। मनुष्य की अपनी निजी आत्म-शक्ति पर जो स्वाभाविक श्रद्धा-विश्वास होता है उसी के ये दोनों भद्दे प्रतिनिधि हैं और स्वयं इन्होनें ही उस श्रद्धा-विश्वास को नष्ट कर डाला है ।
संदर्भ : विचारमाला और सूत्रावली
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
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अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
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