औषधि उतना रोगमुक्त नहीं करती जितना कि चिकित्सक और औषधि में रोगी की श्रद्धा करती है। मनुष्य की अपनी निजी आत्म-शक्ति पर जो स्वाभाविक श्रद्धा-विश्वास होता है उसी के ये दोनों भद्दे प्रतिनिधि हैं और स्वयं इन्होनें ही उस श्रद्धा-विश्वास को नष्ट कर डाला है ।
संदर्भ : विचारमाला और सूत्रावली
ऐसी आत्माएँ होती हैं जो अपने परिवेश के विरुद्ध विद्रोह करती हैं और ऐसा लगता…
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…