मन जिसे जानता नहीं था ऐसे सत्य ने अपना मुख प्रकटा दिया
तब हम वह श्रवण कर सकते हैं, जो नश्वर कानों ने पहले कभी नहीं सुना था,
हम वह अनुभूति पाते जिसे पार्थिव बोध ने कभी अनुभव नहीं किया,
हम उसे प्रेम करते हैं जिसे सामान्य ह्रदय परे हटाता घृणा करता है;
एक तेजस्वी सर्वज्ञता के सम्मुख हमारे मन शान्त मौन हो जाते हैं;
अन्तरात्मा के कक्षों से एक दिव्य वाणी पुकारती है;
अमर-अग्नि के स्वर्णिम अन्तरधाम में
हमें प्रभु-स्पर्श की आनन्दानुभूति मिलती है।

संदर्भ : “सावित्री”

शेयर कीजिये

नए आलेख

केवल सत्य

तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…

% दिन पहले

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले