हमारे अन्तर में एक आकारहीन स्मृति अभी तक चिपकी है
औ’ कभी-कभी, जब हमारी द़ृष्टि अन्तर्मुखी होती है,
पार्थिवता का अज्ञान-पट हमारी आंखों से उठा देती है;
तब वहां एक अल्पकालीन अद्भुत मुक्ति में हम पहुंच जाते हैं।
संदर्भ : “सावित्री”
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…