योग करने के लिए हमेशा मुंह गंभीर बनाये रखना या चुप रहना आवश्यक नहीं है, पर आवश्यक है कि योग को गंभीरतापूर्वक लिया जाये और योग में नीरवता तथा अंतर्मुखी एकाग्रता का बहुत ऊंचा स्थान है। यदि मनुष्य का लक्ष्य अन्तर में पैठना और वहाँ भगवान से मिलना हो तो वह अपने-आपको सर्वदा बाहर की ओर फेंकता नहीं रह सकता। परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि मनुष्य को सर्वदा गम्भीर और उदास, अथवा अधिकांश समय उदास बने रहना होगा …।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…