योग करने के लिए हमेशा मुंह गंभीर बनाये रखना या चुप रहना आवश्यक नहीं है, पर आवश्यक है कि योग को गंभीरतापूर्वक लिया जाये और योग में नीरवता तथा अंतर्मुखी एकाग्रता का बहुत ऊंचा स्थान है। यदि मनुष्य का लक्ष्य अन्तर में पैठना और वहाँ भगवान से मिलना हो तो वह अपने-आपको सर्वदा बाहर की ओर फेंकता नहीं रह सकता। परंतु इसका मतलब यह नहीं है कि मनुष्य को सर्वदा गम्भीर और उदास, अथवा अधिकांश समय उदास बने रहना होगा …।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…