मेरा सत्य वह है जो अज्ञान और मिथ्यात्व को अस्वीकार करता है और ज्ञान की ओर अग्रसर होता है, अंधकार को त्याग कर प्रकाश की ओर बढ़ता है, अहंकार को त्याग कर भागवत-आत्मा की ओर गति करता है, अपूर्णताओं को त्याग कर पूर्णता की ओर प्रगति करता है। मेरा सत्य केवल भक्ति या चैत्य-विकास का सत्य ही नहीं, बल्कि ज्ञान, पवित्रता, दिव्य बल एवं अचंचलता तथा इन सब वस्तुओं का इनके मानसिक, भावुक और प्राणिक रूपों से इनके अतिमानसिक सत्य तक उठना भी है।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
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...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…