“श्रद्धा के साथ जो कोई भक्त मेरे जिस किसी रूप को पूजना चाहता है, मैं उसकी वही श्रद्धा उसमें अचल-अटल बना देता हूँ। ” वह अपने मत और उपासना की उस श्रद्धा के बल पर अपनी इच्छा पूर्ण करा लेता और आध्यात्मिक उपलब्धि को प्राप्त कर लेता है जिसका वह उस समय अधिकारी होता है।
संदर्भ : गीता-प्रबंध
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…