इन भौतिक क्रियाओं को इतना अधिक महत्व क्यों दिया जाये ? ज्यादा अच्छा यह है कि उनसे बिलकुल मुक्त अनुभव करो और उनके बारे में चिंता किए बिना उन्हें अपनी राह जाने दो, जब तक कि तुम्हारें अंदर वह आवश्यक शक्ति और ज्ञान न हो जो इनके अंधकार में हस्तक्षेप करके इन्हें बदलने और परम ज्योति और चेतना कि सच्ची अभिव्यक्ति बनने के लिये इन्हें बाधित न कर दे।
संदर्भ : श्रीमाताजी के वचन (भाग-२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…