समस्त अधो जगत में व्याप्त है तू, जो ,
फिर भी बैठा ऊपर दूर परे ;
कर्मी, शासक, ज्ञानी, सबका स्वामी है तू,
फिर भी सेवक बन जाता प्रेम का !
नहीं तुझे इन्कार बन जाने में भी कीट,
और न ही लोष्ठवत हो जाने में अपमान ;
इसलिए, तेरी विनय से जानते है हम,
कि निश्चय ही, होगा तू भगवान।
संदर्भ : SABCL खण्ड-५
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