समस्त अधो जगत में व्याप्त है तू, जो ,

फिर भी बैठा ऊपर दूर परे ;

कर्मी, शासक, ज्ञानी, सबका स्वामी है तू,

फिर भी सेवक बन जाता प्रेम का !

 

नहीं तुझे इन्कार बन जाने में भी कीट,

और न ही लोष्ठवत हो जाने में अपमान ;

इसलिए, तेरी विनय से जानते है हम,

कि निश्चय ही, होगा तू भगवान

 

संदर्भ : SABCL खण्ड-५

शेयर कीजिये

नए आलेख

केवल सत्य

तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…

% दिन पहले

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले