बच्चों को यह समझ कर शरारत छोडनी चाहिये कि शरारती होना शर्म की बात है, न कि सजा के डर से।
पहली अवस्था में, वह सचमुच उन्नति करता है ।
दूसरी में, वह मानव चेतना में एक पग और नीचे उतार जाता है, क्योंकि भय चेतना का अध: पतन है ।
संदर्भ : शिक्षा के ऊपर
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…