किसी वर्षाप्रधान देश के एक बड़े शहर में एक दिन तीसरे पहर मैंने सात-आठ गाड़ियां बच्चों से भरी देखीं। वे लोग सवेरे ही गांवों की ओर खेतों में खेल-कूद के लिए निकल गये थे, पर वर्षा के कारण उन्हें समय से पहले ही वापिस लौटना पड़ा।

फिर भी बच्चे हंस रहे थे, गा रहे थे और आने-जाने वालों की ओर चञ्चलता-भरे इशारे कर रहे थे।

इस निराशा-भरे मौसम में भी उन्होंने अपनी प्रसन्नता बनाये रखी थी। एक उदास होता तो दूसरे अपने गानों से उसे प्रफुल्लित कर देते। काम-काज में व्यस्त राहगीर जब उनकी खिलखिलाहट सुनते तो उस क्षण उन्हें ऐसा प्रतीत होता मानों आसमान की काली घटा कुछ कम गहरी हो गयी हो।

खुरासान का एक राजकुमार था। नाम था अमीर। खूब ठाठ-बाट की उसकी जिन्दगी थी। एक बार जब वह लड़ाई में गया तो उसके रसोईघर के सामान को लेकर तीन सौ ऊंट भी उसके साथ गये।

दुर्भाग्य से एक दिन वह खलीफा इस्माइल द्वारा बन्दी बना लिया गया, पर दुर्भाग्य भूख को तो नहीं टाल सकता। उसने पास खड़े अपने मुख्य रसोइये को, जो एक भला आदमी था, कहा : भाई, कुछ खाने को तो तैयार कर दे।

उस बेचारे के पास केवल एक मांस का टुकड़ा बचा था। उसने उसे देगची में उबलने को रख दिया और भोजन को कुछ अधिक स्वादिष्ट-बनाने के लिए स्वयं किसी साग-सब्जी की खोज में निकला।

इतने में एक कुत्ता वहां से गुजरा। मांस की सुगन्ध से आकर्षित हो उसने अपना मुंह देगची में डाल दिया। पर भाप की गर्मी पा वह तेजी से और कुछ ऐसे बेढंगे तरीके से पीछे हटा कि देगची उसके गले में अटक गयी। अब तो घबरा कर वह उसके समेत ही वहां से भागा।

अमीर ने जब यह देखा तो उच्च स्वर में हंस पड़ा। उसके अफसर ने, जो उसकी चौकसी पर नियुक्त था, उससे पूछा, “यह हंसी कैसी? इस दुःख के समय भी तुम हंस रहे हो?”

अमीर ने तेजी से भागते हुए कुत्ते की ओर इशारा करते हुए कहा, “मुझे यह सोच कर हंसी आ रही है कि आज प्रातः तक मेरी रसोई का सामान ले जाने के लिए तीन सौ ऊंटों की आवश्यकता पड़ती थी और अब उसके लिए एक कुत्ता ही काफी है।

अमीर को प्रसन्न रहने में मजा आता था… उसके विनोदी स्वभाव की प्रशंसा किये बिना हम नहीं रह सकते। यदि वह इतनी गम्भीर विपत्ति में भी प्रसन्न रह सकता था तो क्या हम मामूली चिन्ता-फिकर में मुंह पर एक मुस्कुराहट भी नहीं ला सकते?

 

संदर्भ : पहले की बातें 

शेयर कीजिये

नए आलेख

प्रार्थना

(जो लोग भगवान की  सेवा  करना चाहते हैं  उनके लिये एक प्रार्थना ) तेरी जय…

% दिन पहले

आत्मा के प्रवेश द्वार

यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…

% दिन पहले

शारीरिक अव्यवस्था का सामना

जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…

% दिन पहले

दो तरह के वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…

% दिन पहले

जब मनुष्य अपने-आपको जान लेगा

.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…

% दिन पहले

दृढ़ और निरन्तर संकल्प पर्याप्त है

अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…

% दिन पहले