लगभग ७०-८० वर्ष पूर्व की बात है श्रीमाँ के एक अनन्य भक्त मुरारी बाबू को अपना एक दांत निकलवाना पड़ा। उन दिनों दंत-चिकित्सा अत्यंत कष्टप्रद होती थी। दांत निकलवाते समय मुरारी बाबू को असह्य पीड़ा हुई। जब उन्हें दंत-चिकित्सक की कुर्सी से छुट्टी मिली उस समय तक उन्हें १०५ डिग्री ज्वर हो गया था ।
दो वर्ष बाद, जब वे एक दूसरे शहर में रह रहे थे, उन्हें उसी स्थान पर फिर पीड़ा होने लगी जिस स्थान से दाँत निकाला गया था। मुरारी बाबू पुनः दंत चिकित्सक की सम्भावना से भयभीत हो गए और पीड़ा को चुपचाप सहते रहे। किन्तु धीरे-धीरे पीड़ा असह्य हो गयी और उन्हें एक दंत-चिकित्सक के पास जाना ही पड़ा। चिकित्सक ने कहा कि जो दांत निकाला गया था और संभवत: उसका एक टुकड़ा मसूड़े में रह गया था । एक्स-रे करने पर उनका अनुमान सत्य निकला।
दंत-चिकित्सक ने मुरारी बाबू से कहा कि उन्हें अविलंब उस टुकड़े को निकलवा देना चाहिये। मुरारी बाबू दांत निकलवाते समय की अपनी असह्य पीड़ा नहीं भूले थे। उन्होने चिकित्सक से शल्यक्रिया को स्थगित करने की प्रार्थना की ।
घर आकार वे श्रीमाँ के चित्र के सामने बैठ गए और उनसे प्रार्थना करने लगे। फिर उन्होने श्रीमाँ को एक पत्र में विस्तार से अपनी समस्या के विषय में लिखकर उसे तुरंत डाक से भेज दिया। अगले दिन प्रातः से ही उनके मसूड़े में सूजन आ गयी। उसमें बहुत दर्द हो रहा था। मुरारी बाबू ने सूजन कम करने के लिये किसी इंजेक्शन या दवा लेने से मना कर दिया था। वे श्रीमाँ के आशीर्वाद पुष्प की प्रतीक्षा कर रहे थे । तीसरे दिन सूजे हुए मसूड़े में मवाद भी पड़ गया। मुरारी बाबू की पत्नी राधा रानी ने मसूड़े को दबाया और उसे एक साधारण सुई से कुरेदा। फलस्वरूप मवाद बह निकला और उसी के साथ जो दांत का टुकड़ा अंदर रह गया था वह भी बह कर निकल गया। बहुत शीघ्र ही सूजन कम हो गई और मसूड़ा स्वस्थ हो गया ।
इस घटना के कुछ समय बाद जब मुरारी बाबू पांडिचेरी आये तब नलिनी कान्त गुप्त ने उन्हें बताया कि उनका पत्र पढ़ने पर श्रीमाँ ने कहा था, “जब वह (मुरारी) पत्र लिख रहा था तभी मुझे सूचना मिल गयी थी और मैंने उसकी प्रार्थना के उत्तर में अपनी शक्ति भेज दी थी । क्योंकि वह ग्रहणशील था, इसलिये शक्ति ने अचूक कार्य किया ।
(यह कथा स्वर्गीय मुरारी बाबू ने मुझे सुनाई थी । )
संदर्भ : श्रीअरविंद और श्रीमाँ की दिव्य लीला
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