‘परम प्रभु’ के लिए पाप का अस्तित्व ही नहीं है – सभी त्रुटियां और दोष सच्ची अभीप्सा और रूपान्तर द्वारा मिटाये जा सकते हैं ।
तुम जो अनुभव कर रहे हो वह तुम्हारी अन्तरात्मा की अभीप्सा है जो भगवान् को खोजना और ‘उन्हें’ जीना चाहती है ।
धैर्य धरो , ज्यादा से ज्यादा निष्कपट बनो और तुम्हारी विजय होगी ।
संदर्भ : माताजी के वचन ( भाग- २)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…