प्यारी मां, क्या नैतिकता ने हमें अपनी चेतना को बढ़ाने में सहायता नहीं पहुंचायी है?

 

यह निर्भर करता है लोगों पर। ऐसे लोग होते हैं जिन्हें इससे सहायता मिलती है। ऐसे लोग भी होते हैं जिन्हें बिलकुल सहायता नहीं मिलती। नैतिकता पूर्णतः एक कृत्रिम और ऐच्छिक वस्तु है, और अधिकतर प्रसंगों में, सर्वोत्तम प्रसंगों में, यह इस प्रकार के नैतिक सन्तोष के द्वारा सच्चे आध्यात्मिक प्रयास को अवरुद्ध कर देती है कि मनुष्य सच्चे पथ पर है और वह सचमुच एक सज्जन पुरुष है, वह अपने कर्तव्यों का पालन करता है, जीवन की सभी नैतिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। इस प्रकार, मनुष्य इतना आत्मतुष्ट हो जाता है कि वह जरा भी आगे नहीं बढ़ता और कोई और प्रगति नहीं करता।

धार्मिक मनुष्य के लिए भगवान् के पथ पर प्रवेश करना बहुत कठिन है। यह बात बार-बार कही गयी है, पर यह सचमुच सत्य है, क्योंकि वह अत्यन्त आत्म-तुष्ट होता है, वह समझता है कि जो कुछ उसे उपलब्ध करना था उसने उपलब्ध कर लिया है, वह अब किसी प्रकार की अभीप्सा नहीं रखता, यहां तक कि उसमें वह मौलिक विनम्रता भी नहीं होती जो तुमसे प्रगति करने की इच्छा कराती है। तुम जानते ही हो, जो व्यक्ति भारत में सात्त्विक मनुष्य’ कहलाता है वह सामान्यतया अपने सद्गुण के अन्दर बहुत सुखपूर्वक बैठा रहता है और कभी उससे बाहर निकलने की ही नहीं सोचता। अतएव, वह चीज तुम्हें भागवत उपलब्धि से लाखों मील दूर रखती है।

आन्तरिक ज्योति पाने से पहले जो चीज वास्तव में मनुष्य को सहायता देती है वह है अपने लिए कुछ विशेष नियमों का निर्माण जो स्वभावतः अत्यन्त कठोर और सुनिश्चित नहीं होने चाहियें, पर फिर भी इतने पर्याप्त रूप में सुस्पष्ट होने चाहिये कि वे सही मार्ग से पूर्णतः बाहर चले जाने या ऐसी भूलें करने से रोक सकें जिन्हें सुधारा न जा सके-ऐसी भूलें जिनके परिणाम मनुष्य जीवन भर भोगता है।

ऐसा करने के लिए, यह अच्छा है कि अपने अन्दर किन्हीं ऐसे सिद्धान्तों को स्थापित कर लिया जाये जो, वे चाहे कुछ भी हों, व्यक्ति के अपने स्वभाव से मेल खाते हों। यदि तुम किसी सामाजिक, समष्टिगत नियम को अपना लो तो तुम तुरन्त इस सामाजिक नियम के बन्धन में पड़ जाओगे और वह प्रायः मौलिक रूप में तुम्हें रूपान्तर के लिए कोई भी प्रयास करने से रोकेगा।

 

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६

शेयर कीजिये

नए आलेख

प्रार्थना

(जो लोग भगवान की  सेवा  करना चाहते हैं  उनके लिये एक प्रार्थना ) तेरी जय…

% दिन पहले

आत्मा के प्रवेश द्वार

यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…

% दिन पहले

शारीरिक अव्यवस्था का सामना

जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…

% दिन पहले

दो तरह के वातावरण

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…

% दिन पहले

जब मनुष्य अपने-आपको जान लेगा

.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…

% दिन पहले

दृढ़ और निरन्तर संकल्प पर्याप्त है

अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…

% दिन पहले