जीवन की परिस्थितियां चाहे जैसी हों, तुम्हें सदैव निराशा से दूर रहने की सावधानी बरतनी चाहिये और फिर दुःखी, उदास और हताश रहने की यह आदत सचमुच परिस्थितियों पर निर्भर नहीं होती, बल्कि यह प्रकृति में विश्वास न होने से उत्पन्न होती है । जिस व्यक्ति में विश्वास होता है, चाहे वह केवल अपने ऊपर ही क्यों न हो, वह सब कठिनाइयों का, सब परिस्थितियों का, अत्यधिक विपरीत परिस्थितियों कभी, बिना निरुत्साहित या निराश हुए, सामना कर सकता है। वह अन्त तक पुरुषार्थ के साथ संघर्ष करता रहता है। जिन व्यक्तियों की प्रकृति में विश्वास नहीं होता उन्हीं में सहनशीलता और साहस का भी अभाव होता है।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-१)
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
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अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
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