तीव्र झंझावात और तूफ़ानी मौसम के थपेड़ों के बीच होकर
मैं चल पड़ा पहाड़ी की छोटी और बीहड़ भूमि पर ।
कौन मेरे साथ आएगा ? कौन चढ़ेगा मेरे साथ ऊपर ?
नदी को पार कर और बर्फ में से होकर ?
मैं नही रहता हूँ नगरो के संकीर्ण घेरो में
तुम्हारे द्वारो और दीवारों से घिरकर;
भगवान नीलमय है आकाश में मेरे ऊपर,
मेरे इर्द गिर्द टकराते है परस्पर हवाएँ और बवन्डर !
यहाँ अपने प्रदेश में मैं क्रीडा करता हूँ एकान्त के साथ,
दुर्दिन ने बनाया है मुझे यहाँ अपना सहचर
कौन जिएगा विशाल होकर ? कौन रहेगा स्वतंत्र होकर ?
यहाँ हवाओं के थपेड़े सहकर चढ़ेगा ऊंची भूमि पर |
मैं स्वामी हूँ तूफान और पर्वत का,
मैं आत्मा हूँ स्वाधीनता और स्वाभिमान का |
बलिष्ठ होना होगा उसे और संकटो का मित्र,
जो भागीदार होगा मेरे राज्य का और मेरे साथ चलेगा !
संदर्भ : श्रीअरविंद काव्य चयन
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