निमंत्रण – श्रीअरविंद की कविता

तीव्र झंझावात और तूफ़ानी मौसम के थपेड़ों के बीच होकर

मैं चल पड़ा पहाड़ी की छोटी और बीहड़ भूमि पर ।

कौन मेरे साथ आएगा ? कौन चढ़ेगा मेरे साथ ऊपर ?

नदी को पार कर और बर्फ में से होकर ?

 

मैं  नही रहता हूँ नगरो के संकीर्ण घेरो में

तुम्हारे द्वारो और दीवारों से घिरकर;

भगवान नीलमय  है आकाश में मेरे ऊपर,

मेरे इर्द गिर्द टकराते है परस्पर हवाएँ और बवन्डर !

 

यहाँ अपने प्रदेश में मैं क्रीडा करता हूँ  एकान्त के साथ,

दुर्दिन ने बनाया है  मुझे यहाँ अपना सहचर

कौन जिएगा विशाल होकर ? कौन रहेगा स्वतंत्र होकर ?

यहाँ हवाओं के थपेड़े सहकर चढ़ेगा ऊंची भूमि पर |

 

मैं स्वामी हूँ  तूफान और पर्वत का,

मैं आत्मा हूँ  स्वाधीनता और स्वाभिमान का |

बलिष्ठ होना होगा उसे और संकटो का मित्र,

जो भागीदार होगा मेरे राज्य का और मेरे साथ चलेगा !

 

संदर्भ : श्रीअरविंद काव्य चयन 

शेयर कीजिये

नए आलेख

आध्यात्मिक जीवन की तैयारी

"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…

% दिन पहले

उदार विचार

मैंने अभी कहा था कि हम अपने बारे में बड़े उदार विचार रखते हैं और…

% दिन पहले

शुद्धि मुक्ति की शर्त है

शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…

% दिन पहले

श्रीअरविंद का प्रकाश

मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…

% दिन पहले

भक्तिमार्ग का प्रथम पग

...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…

% दिन पहले

क्या होगा

एक परम चेतना है जो अभिव्यक्ति पर शासन करती हैं। निश्चय ही उसकी बुद्धि हमारी…

% दिन पहले