मुझे लगता है कि हम तेरे मंदिर के गर्भगृह के हृदय में जा पहुंचे हैं और तेरी ही इच्छा के बारे में अभिज्ञ हो गये हैं। मेरे अंदर एक महान आनंद एक गहरी शांति का शासन है। मेरी सारी आन्तरिक रचनाएँ एक व्यर्थ स्वप्न की तरह गायब हो गयी हैं और अब मैं अपने-आपको तेरी विशालता के आगे किसी चौखटे या पद्धति के बिना, एक सत्ता के रूप में पाती हूँ, जिसका अभी व्यष्टिकरण नहीं हुआ है। अपने बाहरी रूप में सारा अतीत मुझे हास्यापाद रूप से मनमाना दिखता है, फिर भी मैं जानती हूँ कि अपने समय में वह उपयोगी था।

लेकिन अब सब कुछ बादल गया है :  एक नयी स्थिति शुरू हो गयी है ।

संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान 

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