मुझे लगता है कि हम तेरे मंदिर के गर्भगृह के हृदय में जा पहुंचे हैं और तेरी ही इच्छा के बारे में अभिज्ञ हो गये हैं। मेरे अंदर एक महान आनंद एक गहरी शांति का शासन है। मेरी सारी आन्तरिक रचनाएँ एक व्यर्थ स्वप्न की तरह गायब हो गयी हैं और अब मैं अपने-आपको तेरी विशालता के आगे किसी चौखटे या पद्धति के बिना, एक सत्ता के रूप में पाती हूँ, जिसका अभी व्यष्टिकरण नहीं हुआ है। अपने बाहरी रूप में सारा अतीत मुझे हास्यापाद रूप से मनमाना दिखता है, फिर भी मैं जानती हूँ कि अपने समय में वह उपयोगी था।
लेकिन अब सब कुछ बादल गया है : एक नयी स्थिति शुरू हो गयी है ।
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…
देशभक्ति की भावनाएँ हमारे योग की विरोधी बिलकुल नहीं है, बल्कि अपनी मातृभूमि की शक्ति…