हमारे युग में सफलता और उससे मिलने वाली भौतिक तुष्टि का ही मूल्य है। फिर भी असन्तुष्ट लोगों की हमेशा बढ़ती हुई संख्या जीवन का हेतु जानना चाहती है। और, दूसरी ओर, ऐसे सन्त हैं जो जानते हैं और पीड़ित मानवजाति की सहायता करने के लिए यत्नशील हैं और ज्ञान के प्रकाश को फैलाना चाहते हैं। जब ये दोनों-जाननेवाला और जिज्ञासु-मिलते हैं तो जगत् में एक नयी आशा उत्पन्न होती है और फैले हुए अन्धकार में थोड़े-से प्रकाश का प्रवेश होता है।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…