हमारे युग में सफलता और उससे मिलने वाली भौतिक तुष्टि का ही मूल्य है। फिर भी असन्तुष्ट लोगों की हमेशा बढ़ती हुई संख्या जीवन का हेतु जानना चाहती है। और, दूसरी ओर, ऐसे सन्त हैं जो जानते हैं और पीड़ित मानवजाति की सहायता करने के लिए यत्नशील हैं और ज्ञान के प्रकाश को फैलाना चाहते हैं। जब ये दोनों-जाननेवाला और जिज्ञासु-मिलते हैं तो जगत् में एक नयी आशा उत्पन्न होती है और फैले हुए अन्धकार में थोड़े-से प्रकाश का प्रवेश होता है।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…