तुम ध्यान किसे कहते हो? आखें बंद करके एकाग्र होने को? यह सच्ची चेतना को नीचे उतारने के तरीक़ों में से एक है। सच्ची चेतना के साथ एक हो जाना या उसके अवतरण को अनुभव करना ही एकमात्र महत्वपूर्ण चीज़ है और अगर वह रूढ़िगत तरीक़े के बिना आये, जैसा कि मेरे साथ हमेशा हुआ, तो बहुत ही अच्छा। ध्यान बस एक साधन या उपाय होता है। सच्ची गति तो तब होती है जब व्यक्ति चलते-फिरते, कार्य करते, बोलते हुए भी साधना करता रहे।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड -३५)
तुम्हारा अवलोकन बहुत कच्चा है। ''अन्दर से'' आने वाले सुझावों और आवाजों के लिए कोई…
क्षण- भर के लिए भी यह विश्वास करने में न हिचकिचाओ कि श्रीअरविन्द नें परिवर्तन…
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…