श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

धर्म की गलती

आध्यात्मिक भाव पूजा, भक्ति और निवेदन के धार्मिक भाव के विपरीत नहीं है, धर्म में जो गलत है वह मन की कट्टरता जो किसी एक सूत्र को एकांतिक सत्य मान कर उससे चिपकी रहती है। तुम्हें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि सूत्र केवल सत्य की मानसिक अभिव्यक्ति होते हैं और इस सत्य को हमेशा बहुत-से दूसरे तरीकों से भी अभिव्यक्त किया जा सकता  है।

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवान के दो रूप

... हमारे कहने का यह अभिप्राय है कि संग्राम और विनाश ही जीवन के अथ…

% दिन पहले

भगवान की बातें

जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…

% दिन पहले

शांति के साथ

हमारा मार्ग बहुत लम्बा है और यह अनिवार्य है कि अपने-आपसे पग-पग पर यह पूछे…

% दिन पहले

यथार्थ साधन

भौतिक जगत में, हमें जो स्थान पाना है उसके अनुसार हमारे जीवन और कार्य के…

% दिन पहले

कौन योग्य, कौन अयोग्य

‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…

% दिन पहले

सच्चा आराम

सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…

% दिन पहले