एक साधक स्वभाव से उदार और दूसरों पर विश्वास करने वाला था । कुछ बेईमान लोग बार-बार उसकी भलाई का अनुचित लाभ उठाया करते थे । माताजी ने उसकी हालत देखकर और शायद उसकी विचारधारा को पढ़कर कहा, ‘कभी कटु और दोषदर्शी न बनो, विश्वास को हाथ से न जाने दो । ऐसा करने से दुनिया शायद तुम्हें बुद्धिमान कहें, पर आध्यात्मिक दृष्टि से तुम्हारी मौत ही हो जायेगी । ‘
संदर्भ : माताजी की झाँकियाँ
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…