दुःख झेलना जाना


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

यदि किसी समय तुम्हें कोई गभीर दुःख, दारुण संशय या तीव्र कष्ट अभिभूत और हताश कर रहा हो तो शान्ति और स्थिरता पुनः प्राप्त करने
का एक अचूक साधन है।

हमारी सत्ता की गहराइयों में एक ज्योति चमक रही है जो जितनी चमकदार है उतनी ही पवित्र भी। वह ज्योति विश्वव्यापी भगवान् का सजीव और सचेतन अंश है, वह जड़-तत्त्व को जीवन, पोषण और प्रकाश प्रदान करती है। वह उन लोगों की सशक्त और अचूक पथप्रदर्शिका है जो भगवान
का विधान जानने-मानने की इच्छा रखते हैं। जो उन्हें देखने की, उनकी आवाज़ सुनने की, उनके आदेश का पालन करने की अभीप्सा रखते हैं,
यह आश्वासन और प्रेम से परिपूर्ण उनकी सहायिका है। उनके प्रति की गयी कोई भी सच्ची और स्थायी अभीप्सा व्यर्थ नहीं जा सकती; उन पर
किया गया कोई भी दृढ़ और आदरपूर्ण विश्वास निराश नहीं हो सकता; कोई भी आशा भंग नहीं हो सकती।……

कष्ट अनिवार्य नहीं है, वाञ्छनीय भी नहीं, पर जब वह आता है तो हमारे लिए कितना उपयोगी हो सकता है !

प्रत्येक बार जब दुःख के बोझ से हृदय टूटता प्रतीत होता है, तब अन्तर की गहराई में एक द्वार खुलता है और अधिकाधिक समृद्ध गुप्त रत्नराशि लिये नये-नये क्षितिज प्रकट होते हैं और उनकी स्वर्णिम आभा विनाश के कगार पर खड़े जीवन को एक नवीन और अधिक प्रखर जीवन प्रदान करती हुई आती है।

और जब, उत्तरोत्तर अवतरणों से होता हुआ मनुष्य उस यवनिका तक पहुँचता है जिसके उठते ही साक्षात् ‘तू’ प्रकट होता है, तब, ‘हे प्रभु’, कौन वर्णन कर सकता है ‘जीवन’ की उस प्रखरता का जो समस्त सत्ता के अन्दर पैठ जाती है, ‘ज्योति’ की उस शोभा का जो उसे परिप्लावित कर देती है, ‘प्रेम’ की उस महिमा का जो चिरकाल के लिए उसका रूपान्तर कर देती है।

संदर्भ : पहले की बातें 


0 Comments