मोनिका चंदा अपने दोनों नेत्रों की दृष्टि खो बैठी थी। फिर भी यह वृद्ध भक्त-साधक महिला अपने वैभवमय जीवन को विस्मृत करके अकेली ही एक छोटे से टूटे-फूटे घर में रहती थी और अपना सब काम स्वयं ही कर लेती थी।
श्रीमाँ के शरीरत्याग के बाद की बात है। मोनिका के दाँत काफी खराब हो गये। चिकित्सक ने कहा कि उन्हें सभी दाँत निकलवाने पड़ेंगे। मोनिका ने कातर होकर मन ही मन श्रीमाँ से प्रार्थना की कि उनकी सहायता करें जिससे उन्हें अधिक पीड़ा न हो। अब एक चमत्कार हुआ। मोनिका को प्रतीत हुआ जैसे श्रीमाँ ने एक-एक करके उनकी सभी दाँत ढीले कर दिये। अगले दिन डॉक्टर, बड़ी सरलता से, एक के बाद एक उनके दाँत निकालते गये। वृदधा मोनिका को अधिक कष्ट नहीं हुआ।
(यह घटना स्वर्गीया मोनिका दीदी ने मुझे सुनायी थी। )
संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…