… मैं सभी वस्तुओं में प्रवेश करती हूँ, प्रत्येक परमाणु के हृदय में निवास करते हुए मैं वहाँ उस अग्नि को उद्बुद्ध करती हूँ जो शुद्ध करती और रूपांतरित करती है ,यह एक ऐसी अग्नि है जो कभी नहीं बुझती, जो तेरे परमआनंद की संदेशवाहक ज्वाला है , समस्त पूर्णताओं की सिद्धिदाता है ।
तब यही प्रेम नीरवता के साथ ध्यानशील बन जाता है और हे अज्ञेय भव्यता, वह तेरी ओर मुड़ कर आनंद में ‘तेरी नयी अभिव्यक्ति’ की प्रतीक्षा में हैं …
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…