… मैं सभी वस्तुओं में प्रवेश करती हूँ, प्रत्येक परमाणु के हृदय में निवास करते हुए मैं वहाँ उस अग्नि को उद्बुद्ध करती हूँ जो शुद्ध करती और रूपांतरित करती है ,यह एक ऐसी अग्नि है जो कभी नहीं बुझती, जो तेरे परमआनंद की संदेशवाहक ज्वाला है , समस्त पूर्णताओं की सिद्धिदाता है ।
तब यही प्रेम नीरवता के साथ ध्यानशील बन जाता है और हे अज्ञेय भव्यता, वह तेरी ओर मुड़ कर आनंद में ‘तेरी नयी अभिव्यक्ति’ की प्रतीक्षा में हैं …
संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान
अगर तुम्हारी श्रद्धा दिनादिन दृढ़तर होती जा रही है तो निस्सन्देह तुम अपनी साधना में…
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…