श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

चिरयुवा बने रहना

. . . एक ऐसा बुढ़ापा भी है जो वर्षों के संग्रह से भी कहीं अधिक ख़तरनाक और कहीं अधिक वास्तविक है :  वह है विकसित होने और प्रगति करने की अक्षमता।

जैसे ही तुम बढ़ना बंद कर देते हो, जैसे ही तुम प्रगति करना बंद कर देते हो, जैसे ही तुम ज़्यादा अच्छा होना बंद कर देते हो, बढ़ना और विकसित होना बंद कर देते हो, अपने-आपको बदलना बंद कर देते हो, वैसे ही तुम सचमुच बूढ़े हो जाते हो, यानी, तुम विलय की ओर गिरने लगते हो।

ऐसे युवक हैं जो बूढ़े हैं और ऐसे बूढ़े हैं जो युवक हैं। अगर तुम अपने अंदर प्रगति और रूपांतर की इस ज्वाला को संजोये रखो, अगर तुम सावधानी के साथ आगे  बढ़ने के लिए, सब कुछ पीछे छोड़ने के लिए तैयार हो, अगर तुम नयी प्रगति के लिए, नयी उन्नति, नए रूपांतर के लिए हमेशा खुले रहते हो तो तुम चिरयुवा हो। लेकिन अगर तुम जो पा चुके हो उसी से संतुष्ट होकर बैठे रहो; अगर तुम्हें लगता है कि तुम अपने लक्ष्य तक पहुँच चुके हो और अब अपनी कमाई का फल खाने के सिवाय और कुछ करना – धरना नहीं है, तो तुम्हारे आधे से अधिक शरीर क़ब्र में जा चुका है, यही जर्जरता और सच्ची मृत्यु है।

जो कुछ किया जा चुका है वह उसकी तुलना में कुछ भी नहीं है जो करने के लिए बाक़ी है।

पीछे न देखो। सामने देखो, आगे, और आगे, हमेशा आगे।

 संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९२९-१९३१

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवती माँ की कृपा

तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…

% दिन पहले

श्रीमाँ का कार्य

भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…

% दिन पहले

भगवान की आशा

मधुर माँ, स्त्रष्टा ने इस जगत और मानवजाति की रचना क्यों की है? क्या वह…

% दिन पहले

जीवन का उद्देश्य

अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…

% दिन पहले

दुश्मन को खदेड़ना

दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…

% दिन पहले

आलोचना की आदत

आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…

% दिन पहले