… सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं रहता, क्योंकि प्राण उन्हें मन से छिपाता है और उन्हें तृप्त करता है और मन को पता ही नहीं चलता कि कौन-से शक्ति क्रिया को गति दे रही है – इस प्रकार परोपकारिता, मानव-प्रेम, सेवा-भाव के बहाने जो काम किये जाते हैं वे मुख्यतः अहंकार-द्वारा चालित होते हैं जो इन औचित्यों के पीछे अपने को छिपा लेता है। योग में, गुप्त अभिप्राय को पर्दे से खींच कर बाहर निकालना और उससे छुटकारा पाना चाहिये।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग-३)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…