जो कुछ मनुष्य सच्चाई के साथ और निरंतर भगवान् से चाहता है, उसे भगवान् अवश्य देते हैं। तब यदि तुम आनंद चाहो और लगातार चाहते रहो तो तुम अंत में उसे अवश्य प्राप्त करोगे। बस एकमात्र प्रश्न यह है कि तुम्हारी खोज की प्रमुख शक्ति क्या होनी चाहिए, कोई प्राणिक मांग अथवा कोई चैत्य अभीप्सा, जो हृदय के भीतर से प्रकट हो और मानसिक, प्राणिक तथा भौतिक चेतना तक अपने को संचारित कर दे। चैत्य अभीप्सा सबसे बड़ी शक्ति है और सबसे छोटा पथ बनाती है — और इसके अलावा, हमें अधिक शीघ्र या देर से उस पथ पर आना ही होगा ।
सन्दर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग -२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…