किसी व्यक्ति को निरुत्साहित करना अनुचित है, परन्तु मिथ्या उत्साह देना अथवा किसी अनुचित वस्तुके लिये उत्साहित करना ठीक नहीं है। कठोरता का कभी- कभी उपयोग करना पड़ता है (यद्यपि उसका अत्यधिक उपयोग नहीं होना चाहिये) जब कि इसके बिना अनुचित बात पर होनेवाले हठीले आग्रह को सुधारा नहीं जा सकता। बहुत बार, यदि आंतरिक संपर्क स्थापित हो जाता है तो, और किसी चीजकी अपेक्षा नीरव दबाव अधिक फलदायी होता है। कोई अटल नियम नहीं स्थापित किया जा सकता; मनुष्यको हर प्रसंग में निर्णय करना होगा और अच्छे से अच्छेके लिये कार्य करना होगा।
सन्दर्भ : श्रीअरविन्द के पत्र (भाग-२)
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…