’भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य ?
सभी तो उसी एक दिव्य ‘मां’ के बालक हैं ।
‘उनका’ प्रेम उन सब पर समान रूप से फैला हुआ है ।
लेकिन ‘वे’ हर एक को उसकी प्रकृति और ग्रहणशीलता के अनुसार देती हैं ।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग – २)
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…
... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…
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