सूर्य की तरह तेरी ज्योति पृथ्वी पर उतर रही है और तेरी किरणें विश्व को आलोकित कर देंगी। जो सब आधार केंद्रीय अग्नि के तेज को अभिव्यक्त करनेके लिये पर्याप्त रूप में शुद्ध, नमनीय और ग्रहणशील है वे एकत्र हो रहे हैं। यह कार्य बिलकुल ही मनमाने ढंग से नहीं चल रहा है और न यह किसी एक या दूसरे आधार की इच्छा या अभीप्सा पर ही निर्भर है, बल्कि यह निर्भर है उस पर जो कि वह है, जो कि समस्त व्यक्तिगत निर्णय से स्वतंत्र है। तेरी ज्योति विकीर्ण होना चाहती है; जो उसे अभिव्यक्त करने में समर्थ है वह उसे अभिव्यक्त करता है। और ये आधार इसलिये संघबद्ध हो रहे कि जिस भागवत केंद्रको अभिव्यक्त करना है उसे दे, इस विभेदपूर्ण जगत में जितनी पूर्णता के साथ गठित करना संभव हो उतनी पूर्णता के साथ गठित करें।
इस ध्यान की अद्भुत अवस्था में मग्न होकर मेरी सत्ता के सभी कोष उल्लसित हो रहे है; और जो कुछ चिर-विद्यमान है उसे देखकर सत्ता का सर्वांग आनंद में डूब गया है। अब भला तुझसे इस सत्ताको कैसे पृथक् किया जाय? अब यह तेरे साथ पूर्ण तादात्म्य प्राप्त कर संपूर्ण रूप से, सर्वांगीण रूपसे और घनिष्ठ रूप से ‘तू’ बन गयी है।
सन्दर्भ : प्रार्थना और ध्यान
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…
... सामान्य व्यक्ति में ऐसी बहुत-से चीज़ें रहती हैं, जिनके बारे में वह सचेतन नहीं…
भगवान मुझसे क्या चाहते हैं ? वे चाहते हैं कि पहले तुम अपने-आपको पा लो,…
सूर्यालोकित पथ का ऐसे लोग ही अनुसरण कर सकते हैं जिनमें समर्पण की साधना करने…
एक चीज़ के बारे में तुम निश्चित हो सकते हो - तुम्हारा भविष्य तुम्हारें ही…