कृतज्ञ होने का अर्थ है : इस अद्भुत भागवत कृपा को कभी न भूलना जो हर एक को–चाहे वह कैसा भी हो, अज्ञान और ग़लतफ़हमियों से, अहंकार, विरोध और विद्रोह से भरा हो–छोटे-से-छोटे पथ से उसके लक्ष्य तक ले जाती है। कृतज्ञता की पवित्र अग्निशिखा हमारे हृदय में निरन्तर जलती रहे, ऊष्माभरी, मधुर और भास्वर शिखा जो सारे अहं और अन्धकार को मिटा दे; उस ‘परम कृपा’ के प्रति कृतज्ञता की दीपशिखा जो साधक को उसके लक्ष्य तक ले जाती है और जितना वह कृतज्ञ होगा, ‘कृपा’ की इस क्रिया को जितना पहचानेगा और इसके प्रति आभार मानेगा, उतना ही छोटा होगा उस तक जाने का पन्थ।
संदर्भ : सफ़ेद गुलाब
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…