अपने समस्त ह्रदय और समस्त शक्ति के साथ स्वयं को भगवान के हाथों में सौंप दो। कोई शर्त न रखो, कोई माँग नहीं, योग में सिद्धि भी नहीं, बिलकुल कुछ न चाहो, सिवा इसके कि तुम्हारें अंदर और सीधे तुम्हारे माध्यम से उनका संकल्प चरितार्थ हो। जो लोग भगवान से कुछ माँगते है, भगवान उन्हें वह चीज़ अवश्य देते हैं। किंतु जो लोग कुछ नहीं माँगते और अपने-आपको समर्पित कर देते हैं, उन्हें वे हर वह चीज़ दे देते ही जो वे मांग सकते थे या जिसकी उन्हें ज़रूरत हो सकती थी। इसके अतिरिक्त वे उन्हें अपने-आपको दे देते हैं और अपने प्रेम के सहज वरदान से सम्पन्न कर देते हैं ।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड -१६)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…