तुम्हारे लिए यह बिलकुल सम्भव है कि तुम घर पर और अपने काम के बीच रह कर साधना करते रहो-बहुत-से लोग ऐसा करते है। आरम्भ में बस आवश्यकता यह है कि जितना अधिक सम्भव हो उतना माताजी का स्मरण करते रहो, प्रत्येक दिन कुछ समय हृदय में उनका ध्यान करो, अगर सम्भव हो तो भगवती माता के रूप में
उनका चिन्तन करो, अपने अन्दर उनको अनुभव करने की अभीप्सा करो, अपने कर्मों को उन्हें समर्पित करो और यह प्रार्थना करो कि वे आन्तरिक रूप से तुम्हें मार्ग दिखायें और तुम्हें संभाले रखें।
यह आरम्भिक अवस्था है और बहुधा इसमें बहुत समय लग जाता है, पर यदि कोई सच्चाई और लगन के साथ इस अवस्था में से गुजरता है तो मनोवृत्ति कुछ-कुछ बदलना आरम्भ कर देती है और साधक में एक नयी चेतना खुल जाती है जो अन्तर में श्रीमां की उपस्थिति के बारे में, प्रकृति में और जीवन में होने वाली उनकी
क्रिया के बारे में, अथवा सिद्धि का दरवाजा खोल देने वाली किसी अन्य आध्यात्मिक अनुभूति के बारे में अधिकाधिक सचेतन होना आरम्भ कर देती है।
संदर्भ : श्रीअरविंद के वचन
तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…
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