जब तुम्हारें अंदर कोई कामना हो तो तुम अपनी वांछित वस्तु द्वारा शासित होते हो, वह तुम्हारें मन और जीवन पर कब्जा कर लेती है और तुम दास बन जाते हो। अगर तुम्हें खाने का लोभ हो तो तुम भोजन के स्वामी नहीं रहते, भोजन तुम्हारा स्वामी हो जाता है।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
मेरी प्यारी माँ, काश ! मैं अपनी अज्ञानी सत्ता को यह विश्वास दिला पाता कि…
तुम्हारा अवलोकन बहुत कच्चा है। ''अन्दर से'' आने वाले सुझावों और आवाजों के लिए कोई…
क्षण- भर के लिए भी यह विश्वास करने में न हिचकिचाओ कि श्रीअरविन्द नें परिवर्तन…
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…