कब तक तुम इस मन के गोलाकार पथों पर चक्कर खाते रहोगे ?
अपनी क्षुद्र अहम सत्ता और नगण्य वस्तुओं से घिरे रहोगे ?
संदर्भ : सावित्री
चेतना के परिवर्तन द्वारा वस्तुओं की बाहरी प्रतीतियों से निकल कर उनके पीछे की सच्चाई…
नीरवता ! नीरवता ! यह ऊर्जाएँ एकत्र करने का समय है, व्यर्थ और निरर्थक शब्दों…
जब तक कि मनुष्य अपने अन्दर गहराई में नहीं जीता और बाहरी क्रिया-कलापों को बस…